संतकबीर नगर – सरकारी अस्पताल, जो गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए इलाज की उम्मीद का एकमात्र साधन होते हैं, अब अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं। संतकबीर नगर के खलीलाबाद स्थित जिला अस्पताल में एक गंभीर और हैरान कर देने वाली काली साजिश का पर्दाफाश हुआ है। यहां मरीजों की जिंदगी का सौदा किया जा रहा है और उन्हें प्राइवेट अस्पतालों के हाथों बेचने की मंशा से बोली लगाई जाती है।
कैसे होती है सौदेबाजी?
रात के समय अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी मरीजों के परिजनों को यह बताकर गुमराह करते हैं कि अस्पताल में मरीज का इलाज संभव नहीं है, और उसे तुरंत रेफर किया जाना चाहिए। इसके बाद, अस्पताल के बाहर खड़ी प्राइवेट अस्पतालों की एंबुलेंस सक्रिय हो जाती हैं। ये एंबुलेंस मरीजों को अपने अस्पतालों में भर्ती कर, भारी रकम वसूलने का काम करती हैं।
नाम न बताने की शर्त पर एक अस्पताल कर्मचारी ने बताया, “यह पूरी साजिश अस्पताल प्रशासन और प्राइवेट अस्पतालों के बीच एक मजबूत साठगांठ का नतीजा है। हर महीने एक निश्चित संख्या में मरीजों को जानबूझकर रेफर किया जाता है, और बदले में अस्पताल के कुछ कर्मचारी मोटे कमीशन के रूप में हिस्सेदार होते हैं।”
सूत्रों के मुताबिक, मरीजों से वसूली गई रकम का 20 से 25% हिस्सा इन सौदों को अंजाम देने वाले कर्मचारियों की जेब में जाता है।
कानूनी चुप्पी
सरकारी अस्पतालों के भीतर प्राइवेट एंबुलेंस का आना-जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित था, लेकिन अब यह नियम महज कागजों तक ही सीमित रह गया है। प्रशासन की अनदेखी और भ्रष्टाचार के कारण यह गोरखधंधा बेरोकटोक जारी है।
यहां तक कि नियमों के उल्लंघन और गंभीर मानवीय संकट के बावजूद जिम्मेदार अधिकारी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे। इस स्थिति ने सरकारी अस्पतालों की छवि को बुरी तरह से धूमिल कर दिया है।
सवाल उठते हैं
सरकारी अस्पतालों को गरीबों की उम्मीद और अंतिम सहारा माना जाता है, लेकिन जब वही अस्पताल मरीजों की जान और उनके परिवार की वित्तीय स्थिति का सौदा करने लगे, तो यह समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। प्रशासन को इस गंभीर समस्या पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि मरीजों के जीवन के साथ साथ उनके परिवारों की मेहनत और विश्वास को भी कोई नुकसान न पहुंचे। समाज को यह समझने की जरूरत है कि जब स्वास्थ्य सेवा के नाम पर इस तरह की बुराई पनपने लगे, तो केवल कानूनी कार्रवाई ही इसका इलाज नहीं हो सकती, बल्कि हमें इस व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता है।