हापुड़, उत्तर प्रदेश:
जनपद हापुड़ के सिखेड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही एक बार फिर उजागर हुई है। दो दिन पहले इसी अस्पताल में एक ही दिन में दो डिलीवरी के दौरान नवजात शिशुओं की मौत हुई थी। अब एक और हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जिसमें एक मरीज इलाज के दौरान ग्लूकोज की खाली बोतल हाथ में लेकर अस्पताल में डॉक्टर और नर्सों को खोजता नजर आया।
वायरल हो रहे वीडियो में मरीज दयाराम अस्पताल परिसर में इधर-उधर घूमते दिख रहा है। जानकारी के मुताबिक, दयाराम को उल्टी-दस्त की शिकायत के बाद सिखेड़ा सीएचसी में भर्ती कराया गया था। उन्हें ग्लूकोज की ड्रिप दी गई थी, लेकिन बोतल खत्म होने के बाद भी कोई भी मेडिकल स्टाफ उनकी देखरेख के लिए मौजूद नहीं था। मजबूर होकर दयाराम को खुद ही खाली बोतल हाथ में लेकर डॉक्टर और नर्स की तलाश में घूमना पड़ा।
स्वास्थ्य सेवा या भगवान भरोसे?
वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है कि उस वक्त अस्पताल परिसर में न कोई डॉक्टर मौजूद था, न कोई नर्स। मरीज दयाराम का कहना है, “ड्रिप खत्म हो गई थी, लेकिन कोई देखने वाला नहीं था। मजबूरी में खुद ही इधर-उधर मदद के लिए भटकना पड़ा।”
प्रशासनिक प्रतिक्रिया और रटी-रटाई सफाई
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए डिप्टी सीएमओ डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि मामला उनके संज्ञान में है। उन्होंने बताया कि, “मरीज दयाराम को भर्ती किया गया था और फार्मासिस्ट मनेश दोपहर 2 बजे ड्यूटी खत्म कर चले गए थे। दूसरा स्टाफ ड्यूटी पर था, लेकिन ड्रिप खत्म होने के बावजूद मरीज की देखभाल नहीं की गई, जो स्पष्ट रूप से लापरवाही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि मामले की जांच करवाई जाएगी और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। “मरीज को ड्रिप हटाने या दूसरी ड्रिप लगाने की जिम्मेदारी अस्पताल स्टाफ की थी। उसे खाली बोतल लेकर भटकना नहीं पड़ना चाहिए था,” उन्होंने जोड़ा।
नवजातों की मौत पर भी चुप्पी
गौरतलब है कि इसी अस्पताल में दो दिन पहले एक ही दिन में दो डिलीवरी हुई थीं और दोनों ही नवजातों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद से स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जिम्मेदारी तय करने की बजाय खुद को बचाने में लगे हैं। परिवारों को यह कहकर टाल दिया गया कि “होनी को कौन टाल सकता है।”
सरकारी दावों पर बड़ा सवाल
उत्तर प्रदेश सरकार भले ही ग्रामीण और सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। अस्पतालों की इस तरह की लापरवाही से न केवल सरकार की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि जनता का भरोसा भी टूटता जा रहा है।
अब देखना यह होगा कि इस लापरवाही के दोषियों पर क्या वाकई कोई ठोस कार्रवाई होती है या मामला भी पिछली घटनाओं की तरह फाइलों में ही दफन हो जाएगा।