अनीता राज की समसामयिक कविता। किशन कन्हैया अब लाज बचावै न अइहा
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Publish Date: 26-08-2024
द्वापर में अब किशन कन्हैया लाज बचावे न अइहा
घोर कलयुग में अब पाप बढ़ल बा नाव हँसावे ना अइह ,
द्वापर के किशन कन्हईया अब लाज बचावें ना अइह ।।
एक ना अब घर - घर दुःशासन अब चीर बढ़ावे ना अइह ,
हे कलयुग के नारी सुनला अब भइया गिरधारी ना अइह ।
सीता सती सावित्री अनुसुइया ना ममतामयी धीर धरा ,
खड़ग भुजाली शस्त्र साधा दुर्गा काली शक्ति रूप धरा ।।
एक चेहरा पर दुईगो मुखौटा नकली लगाइके घूमता ,
नियत में बहसीपन बा दऊरत बेशर्मी निगहिया घूरता ।।
छोड़ धीर गंभीर हया क परदा धनुष - बान संधान करा ,
खड़ग भुजाली कटारी बनिके अब दुष्टन क संहार करा ।।
"अनीता" छलनी - छलनी कइडा लेई दुइ धार कटारी ,
आपन न्याय खुद करा लोगवा बुझी ना तोहार लचारी ।।
(अनीता राज)