जातीय समीकरण के चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही भाजपा-अपना दल एस की संयुक्त उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल
Category Election-2024
Publish Date: 27-05-2024
संजीव सिंह लखनऊ । मिर्जापुर लोकसभा सीट से हैट्रिक की आस में उतरीं भाजपा-अपना दल (एस) की संयुक्त उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल जातीय चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही हैं। भाजपा से टिकट कटने के बाद भदोही के मौजूदा सांसद रमेश बिंद को इस सीट से उतारकर सपा ने अनुप्रिया के विजयरथ को रोकने की भरपूर कोशिश की है। वहीं, बसपा ने अगड़ी जाति के वोटबैंक को साधने के लिए ब्राह्मण चेहरे मनीष तिवारी को उतारकर अनुप्रिया को घेरने की कोशिश की है। इसलिए माना जा रहा है कि इस बार अनुप्रिया की जीत उतनी आसान नहीं, जितनी पहले के चुनावों में थी। इसी को देखते हुए अपना दल एस ने प्रचार प्रसार और तेज कर दिया है।
जानकारी के लिए बता दें कि भदोही से 2009 में अलग होने के बाद यह कुर्मी बहुल हो गई। इससे यहां का जातीय समीकरण अपना दल (एस) के लिए मुफीद रहा है। इसी समीकरण को देखते हुए ही भाजपा ने 2014 में ही मिर्जापुर सीट को सहयोगी अपना दल (एस) के खाते में दे दिया है। 2014 व 2019 के चुनाव में मोदी-योगी के नाम पर जनता ने जातीय दीवार को दरका कर अनुप्रिया को जिताया था। पर, इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन ने बिंद जाति का उम्मीदवार उतारकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। माना जा रहा है कि जातीय चक्रव्यूह तोड़ने के लिए अनुप्रिया पटेल को इस बार अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। दोनों पक्ष के उम्मीदवार अपनी-अपनी जातियों, अन्य पिछड़ा और दलित जातियों के सहारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुटे हैं। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं की वजह से तैयार हुए लाभार्थी वर्ग का बल अनुप्रिया को थोड़ा राहत दे सकता है।
अब मतदान में कुछ ही दिन बचे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विपक्ष के अधिकांश बड़े नेताओं की सभा व रोड शो हो चुके हैं। इसलिए चुनावी तस्वीर लगभग-लगभग साफ हो चुकी है। चुनावी जंग अनुप्रिया और रमेश बिंद के बीच सिमटती दिख रही है। अलबत्ता बसपा के मनीष तिवारी के अगड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की वजह से अनुप्रिया को थोड़ी चुनौती जरूर मिल रही है। हालांकि दलित मतदाताओं का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं दिख रहा है। अगर बसपा उन्हें साधने में कामयाब रही, तो हार-जीत का अंतर कम हो सकता है। वहीं, सपा भी आरक्षण खत्म करने और संविधान के मुद्दे पर इन्हें समझाने और रिझाने की कोशिश में जुटी है। अगर वह सफल रही तो अनुप्रिया की चुनौतियां और बढ़ जाएंगी।