पीएम और सीएम की कर्मभूमि होने के बावजूद पूर्वांचल में भाजपा को मिली हार, इसका यह रहा बड़ा कारण
Category Election-2024
Publish Date: 05-06-2024
संजीव सिंह लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को पूर्वांचल में तगड़ा झटका लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि होने के बावजूद पूर्वांचल में भाजपा की हार के कई मायने हैं।पूर्वांचल भाजपा के लिए इस चुनाव में भी अहम माना जा रहा था। 2019 में वाराणसी के आसपास की सीटें गाजीपुर, घोसी और लालगंज को छोड़कर भाजपा ने अच्छी बढ़त ली थी। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा को पूर्वांचल में हार नसीब हुई थी, उसी तरह से 2024 लोकसभा चुनाव में भी पराजय मिली है।
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे चंदौली, राबर्ट्सगंज, गाजीपुर और जौनपुर से लेकर बलिया, घोसी, सलेमपुर, आजमगढ़ व लालगंज में भाजपा की बुरी तरह से हार हुई है। अलबत्ता भदोही में भाजपा और मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल की जीत ने थोड़ी बहुत लाॅज बचाई है। बलिया और सलेमपुर में तो भाजपा लगातार दो बार से अच्छे मार्जिन से जीत रही थी। बावजूद, इसके करारी हार मिली है। इस बार डा. संजय की निषाद पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा से गठबंधन काम न आया। दोनों के वोट भाजपा पर ट्रांसफर नहीं हो पाए।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो प्रचार अभियान में आरएसएस और भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर सिर्फ युवाओं को तरजीह देना भी भूल साबित हुई। इसके अलावा पूर्वांचल में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह उसके ही द्वारा दिए नारे अबकी बार चार सौ पार ने भी नुकसान किया है। क्योंकि इसी नारे की आड़ में विपक्षी गठबंधन ओबीसी खासकर दलितों को यह समझाने में कामयाब रहा कि प्रचंड बहुमत लेकर भाजपा संविधान बदल देगी। यह इससे भी तस्दीक होता है कि बसपा के वोट बड़े पैमाने पर इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों को मिले हैं।
माना जा रहा है कि अग्निवीर योजना से युवाओं में आक्रोश और अफसरशाही का बेलगाम होना भी भाजपा के गले की हड्डी बन गया। जहां चेहरा बदल दिया गया, उन नए चेहरों ने भाजपा के स्थानीय संगठन से तालमेल नहीं बैठाया और जहां पुराने चेहरों पर भरोसा जताया गया, उन पुराने चेहरे ने मोदी के नाम पर चुनाव जीतने की आस में हाथ पर हाथ धरे रहने में ही अपनी कामयाबी खोजी। जो आखिरकार घातक सिद्ध हुई। केन्द्र और प्रदेश सरकार की विकास योजनाओं के बारे में लोगों को समझा भी नहीं पाए। वहीं, पूर्वांचल की जीत में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की रणनीति ने भी खासी सफलता हासिल की। जैसे बलिया में उन्होंने अपने पिछले चुनाव के प्रत्याशी को रिपीट कर ब्राह्मण कार्ड खेला जो सफल भी रहा। घोसी में उन्होंने राजीव राय को उतार कर भूमिहार मतों को अपने पाले में कर लिया। ऊपर से ओमप्रकाश राजभर और उनके बेटों के बड़बोलेपन ने भी नुकसान किया।